जालंधर(विशाल कोहली)
भोले के प्रसाद के रूप में पहचानी जाने वाली भांग से ऐसी दवाएं बनाने की तैयारी है, जिसका उपयोग पेन मैनेजमेंट के साथ पर्किंसन, अल्जाइमर, मिर्गी, भूख न लगने जैसे रोगों के उपचार के लिए भी किया जा सकेगा। राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान (एनबीआरआइ) ने भांग के शोध में एक कदम आगे बढ़ाते हुए ऑस्ट्रेलियाई यूनिवर्सिटी से हाथ मिलाया है।
दोनों मिलकर भांग की ऐसी किस्में तैयार करने की दिशा में काम कर रहे हैं, जिसमें नशीले तत्व टेट्राहाईड्रोकेनेबिनॉल (टीएचसी) का मानक 0.3 फीसद से कम हो, लेकिन महत्वपूर्ण औषधीय तत्वों से भरपूर हो। लिसमोर की यूनिवर्सिटी के साथ सभी बातें तय हो चुकी हैं। जल्द ही एमओयू किया जाएगा। उनका कहना है, केनेबिस के तमाम औषधीय गुणों का हम केवल इसलिए दोहन नहीं कर पा रहे हैं, क्योंकि नारकोटिक्स विभाग इसकी खेती की अनुमति नहीं देता, जबकि कैंसर जैसे रोगों में अत्यंत कारगर भांग की उपयोगिता को देखते हुए वैज्ञानिक इसकी व्यावसायिक खेती के पक्षधर हैं। बीते वर्ष एनबीआरआइ में केनेबिस रिसर्च सेंटर की स्थापना की गई थी।
यह होते हैं गुण
कैंसर मरीजों को दर्द से राहत दिलाने के लिए मार्फीन दी जाती है। दर्द से राहत के लिए मार्फीन के मुकाबले भांग ज्यादा कारगर है और इसके मार्फीन जैसे दुष्प्रभाव भी नहीं हैं। बीज प्रोटीन का बड़ा स्नोत है। एनबीआरआइ इससे औषधि व न्यूट्रास्यूटिकल तैयार करने की कोशिश में है। रेशा (फाइबर) बेहद कोमल व मजबूत होने के कारण दस्ताना, बोरा, मोजा आदि बनाने में प्रयोग होता है।

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