जालंधर (विनोद मरवाहा)
काम अपना बनता, भाड़ में जाए जनता, नौकरी को अंजाम देने का यही मूल मंत्र बन गया है जालंधर नगर निगम के अधिकारियों का। वे विकास के नाम पर शहर के लोगों की जिंदगी में तूफान खड़ा कर रहे हैं ताकि शहर में लंबी पारी खेलने के साथ मलाई काटने का मौका मिल जाए। निगम की सुस्ती और अधिकारियों के भ्रष्टाचार के खंबों के सहारे महानगर के लगभग सभी हिस्सों में अवैध निर्माण का गोरख धंधा काफी फल फूल रहा है ।
अगर यह कहा जाए कि निगम अधिकारीयों की कमाई का दूसरा नाम अवैध निर्माण है तो कोई भी गलत बात नहीं होगी। पैसे मिल जाने के बाद न तो निगम अधिकारी व कर्मचारी निर्माण के पास फटकते हैं और न ही अन्य जिम्मेदार विभाग। पूरी तरह से अवैध निर्माण करवाकर निगमाधिकारी मोटी मलाई काट रहे हैं। बीच-बीच में निगरानी के लिए जिम्मेदार नगर निगम के कर्मचारियों को भी हिस्सा मिलता रहता है। कई बार तो नगर निगम बाबू निर्माण रुकवाने की फाइलें दबा देते हैं। पैसे के बल पर निर्माणकर्ता कई-कई महीनों तक चले निर्माण के बाद इमारत बनाकर खड़ी कर लेते हैं। एक बार इमारत बन गई तो फिर उसका बाल भी बांका नहीं होता। विशेष मामलों में ही ध्वस्तीकरण होता है।
बहरहाल अब देखने वाली बात ये होगी कि भ्रष्टाचार मुक्त नगर निगम का सपना देखने वाले मेयर जगदीश राज राजा इस पर कोई कार्यवाही करते है या फिर निगम अधिकारियों का गोरखधंधा ऐसे ही चलता रहेगा।

 

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