जालंधर(विनोद मरवाहा)
दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान की ओर से गाँव दौलतपुर में श्री गुरू रविदास महाराज जी के 640 वें प्रकाशोत्सव पर एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। उपस्थित श्रद्धालुगणों को संबोधित करते हुए संस्थान की प्रवक्ता श्री आशुतोष महाराज जी की शिष्या साध्वी ब्रहमप्रीता भारती जी ने कहा कि गुरू रविदास जी ने ऊँच नीच की भावना तथा ईश्वर भक्ति के नाम पर किए जाने वाले विवाद को सारहीन तथा निरर्थक बताया और सबको परस्पर मिलजुल कर प्रेमपूर्वक रहने का उपदेश दिया। उनका विश्वास था कि ईश्वर की भक्ति के लिए सदाचार, परहित भावना तथा सद्व्यवहार का पालन करना अति आवश्यक है। अभिमान त्याग करदूसरों के साथ व्यवहार करने और विनम्रता तथा शिष्टता के गुणों का विकास करने पर उन्होंने बहुत बल दिया। अपने एक भजन में उन्होंने कहा है-कह रैदास तेरी भगति दूरि है, भाग बड़े सो पावै। तजि अभिमान मेटि आपा पर, पिपिलक हवैचुनि खावै।भाव कि ईश्वर की भक्ति बड़े भाग्य से प्राप्त होती है। अभिमान शून्य रहकर काम करनेवाला व्यक्ति जीवन में सफ ल रहता है जैसे कि विशालकाय हाथी शक्कर के कणों को चुनने में असमर्थ रहता है जैसे कि विशालकायहाथी शक्कर के कणों को चुनने में असमर्थ रहता है जबकि लघु शरीर की पिपीलिका इन कणों को सरलतापूवर्क चुन लेती है। इसीप्रकार अभिमान तथा बड़प्पन का भाव त्याग कर विनम्रतापूवर्क आचरण करने वाला मनुष्य ही ईश्वर का भक्त हो सकता है। उनकी वाणी भक्ति की सच्ची भावना समाज के व्यापक हित की
कामना तथा मानव प्रेम से ओत प्रोत होती थी। उनकी वाणी का इतना व्यापक प्रभाव पड़ा कि समाज के सभी वर्गों के लोग उनके प्रति श्रद्धालु बन गए। उनके उपदेश समाज के कल्याण तथा उत्थान के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है। उन्होंने अपने आचरण तथा व्यवहार सेयह प्रमाणित कर दिया है कि विचारों की श्रेष्ठता समाज के हित की भावना से प्रेरित कार्य तथा सद्व्यवहार जैसे गुण ही मनुष्य कोमहान बनाने में सहायक होते है।
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