चुनावी मौसम के दल बदलू
जालंधर(विनोद मरवाहा)
चुनावों से पहले दल बदलू मेला शुरू हो जाता है। स्वार्थ के लिए कई नेता, धुर विरोधी पार्टी में शामिल हो जाते हैं। चुनाव जीतने के लिए पार्टियां भी ऐसे नेताओं को खूब भाव देती हैं। भाजपा से कांग्रेस में जाने वालों का यह दलबदल कितना सही और कितना गलत है इसे जनता अपने वोट से बताएगी।
पंजाब के अंदर चल रहे राजनीतिक घटनाक्रम पूरी तरह से अवसरवाद की परिपाटी को आगे बढ़ा रहे हैं। पिछले कुछ समय से नेताओं के एक पार्टी छोड़कर दूसरे में शामिल होने की घटनाएं तेज हो गई हैं। जहां जिसको लाभ होता नजर आ रहा है वह उसी का दामन थाम रहा है। यह सिर्फ पंजाब में ही नहीं हो रहा बल्कि देश के कई राज्यों में ऐसा होता नजर आ रहा है। पंजाब में तो इस समय भाजपा लगभग दिग्गज नेताओं से खाली हो चुकी है। हालांकि जो नेता भाजपा छोड़कर कांग्रेस में गए वह भाजपा में भी कद्दावर नेता रहे हैं। जाहिर है कि उन नेताओं के जाने से कांग्रेस मजबूत हुई और भाजपा को धक्का लगा है। यह मजबूती और झटके जनता के बीच कितने कारगर साबित होंगे यह तो चुनाव परिणाम आने के बाद ही पता चल जाएगा।
सोचने का विषय तो यह है कि पूरी तरह से अवसरवादी हो चुके हमारे नेताओं से जनता क्या उम्मीद करेगी। ऐसा नहीं है कि इससे पहले नेताओं के पार्टी छोड़ने और विपक्षी का दामन थामने की घटना न हुई हो लेकिन जितनी संख्या में वर्तमान समय में नेताओं का पलायन हो रहा है वह अपने आप में राजनीति के क्षेत्र में एक रेकार्ड के रूप में दर्ज हो रहा है। यह दलबदल कितना सही और कितना गलत है इसे जनता अपने वोट से बताएगी।

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