जालंधर(विनोद मरवाहा)
केसरिया वाले भी कुछ कम नहीं हैं। दिल्ली की जंग की सुगबुगाहट अभी से शुरू हो गई है। ये भी पंजाब के साथ साथ विशेषकर जालंधर में भी वर्षो पहले खोई विरासत को पाने के ख्वाब देख रहे हैं। पंजाब की मौजूदा सरकार की कार्यप्रणाली पर शोर मचाने पर बड़ा जोर दिया जा रहा है। जबकि जिले वालों और राज्य वालों की जोड़ी न तो कंधे से कंधा मिला रही है और न ही अभी तक गुटबाजी खत्म होने का नाम ले रही है। पंजाब वाले बेशक पार्टी की मान-मर्यादा को बढ़ाने के लिए पसीना बहा रहे हों लेकिन उनके कुल के ही कुछ लोग उनके प्रयासों पर पानी फेर रहे हैं। पंजाब वाले तो इस बारे में सोच-सोचकर ही परेशान है, जबकि जालंधर वालों को दूसरी ही चिंता खाए जा रही है क्योंकि सबसे बड़े वालों का शहर के प्रमुख चेहरों से जिला प्रधान का चुनाव भी अभी होना है। इसके लिए शहरवाले नेताओं की कुंडलियां खंगाली जा रही हैं। लिहाजा फूंक-फूंक कर कदम उठाया जा रहा है। शहर वालों को चिंता सता रही है कि अगर पहले की ही भांति किसी ऐसे व्यक्ति को प्रधान बना दिया गया तो संगठन की बची खुची साख भी मिटटी में मिल जाएगी। कारण यह है कि पहले वाले से डील कर चुके पार्टी कार्यकर्त्ता पहले से ही काफी परेशान हैं क्योंकि उनके कार्यक्रम के दौरान अनुशासन की हदें टूटी हैं और असंवैधानिक तरीके से पार्टी की गरिमा को तार-तार करने की कोशिश हुई है उसकी चर्चा पूरे शहर व पंजाब के बीच है। लोग तो यह भी कह रहे हैं कि पार्टी में कुछेक लोगों को लड़ाई के लिए सिंग निकाल कर चलने की आदत है। अब आदत चाहे जो भी हो लेकिन एक बात तो तय है कि पंजाब वालों को उनके लखन बड़ा दुख दे रहे हैं।

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