जालंधर(विनोद मरवाहा)
अवैध कॉलोनियों को बनाना, बसाना और फिर पास कराना कोई नया खेल नहीं है। सालों-साल से यह धंधा चल रहा है। इस धंधे में नोटों की रेलमपेल तो है ही और जब वोटों का गणित भी आ जुड़ता है तो फिर जैसे सारी प्रक्रिया को पहिए ही लग जाते हैं। इनमें ऐसी कॉलोनियों भी हैं जो कृषि भूमि पर बसाई गईं। गांवों के लाल डोरे की हद के साथ लगती कॉलोनियां भी हैं, जिन्हें सुरक्षित कहकर बेच दिया गया। इन तमाम कॉलोनियों की हालत स्लम से भी बदतर है लेकिन एक बार कॉलोनी बस गई तो बस गई। फिर उसके आगे सब बेबस हैं, कोर्ट भी। ये कॉलोनियां पूरी तरह से अवैध ढंग से बनाई जाती हैं और एक बार बनने-बसने के बाद उनमें बिजली, पानी, सड़क तथा अन्य सुविधाओं की मांग की जाती है। दूसरी तरफ, उन कॉलोनियों को को ये सुविधाएं नहीं मिल पातीं, जहां लोग नियमानुसार काम करते हैं और पूरा टैक्स भी अदा करते हैं। यह भी कहा जाता है कि जब तक इन कॉलोनियों को सुविधाएं दी जाती रहेंगी, इनके बनने का सिलसिला जारी रहेगा।
हर पार्टी के नेता इस खेल में शामिल हैं। एक बार कॉलोनी बनाकर बेचने से नोटों से जेबें भरती हैं तो फिर उनका अस्तित्व इसलिए बचा रहता है कि कोई भी वोट नहीं खोना चाहता। इन कॉलोनियों के वोटों की चिंता सभी को है। नोट बनाने वालों पर आज तक कभी गाज नहीं गिरी और वोट बनाने वाले नेता महान हो गए हैं।
पिछले कुछ सालों में जालंधर को अवैध कॉलोनियों ने जिस तरह बदरंग किया है, अब उस सिलसिले को यहां रुकना ही चाहिए।

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