जालंधर(विशाल कोहली)
कोरोना की दूसरी लहर ने बच्चों को भी चपेट में लिया है। कोरोना से ठाक होने का बाद भी अगर आपका बच्चा भी अनिद्रा, अतिनिद्रा, डरकर जागने, कमरे से बाहर निकलने का प्रयास करे तो समझ लें कि कोमल मन में कोरोना संक्रमित होने, एकांतवास, लॉकडाउन का प्रतिकूल असर है। बच्चे को संभालना, हौसला देना आपकी जिम्मेदारी है।
एक मनोचिकित्सक डॉक्टर ने बताया कि शून्य से पांच साल के बच्चे इतने नादान होते हैं कि उन्हें बीमारी का पता नहीं होता। इसलिए वे अधिक डरते नहीं हैं। 15 से 18 साल आयु के किशोर-नवयुवक इस समय 10 से 12 घंटे मोबाइल फोन में इंटरनेट का इस्तेमाल कर रहे हैं। वे बीमारी से भी डरे हैं, मोबाइल फोन का अधिक इस्तेमाल करने से अवसाद का शिकार हैं। हालांकि, व्यस्कों को भी ऐसी दिक्कतें आ रही हैं। सबसे अधिक चिंता छह से 14 साल की आयु के बच्चों की हैं।
ये ऐसी आयु है, अधिकांश बच्चे अपने माता-पिता के कमरे में ही सोते हैं। माता-पिता कोरोना पाजिटिव हुए, तो बच्चा अलग कमरे में अकेला हो गया। बच्चा पाजिटिव हुआ तो उसे एकांतवास में डाल दिया। ऐसे बच्चों के हाथ में भी मोबाइल फोन आ गया है।टीवी में भी कोरोना की भयावह स्थिति को देखते हैं। नतीजा, बच्चे रात्रि में अचानक चीखते हुए जाग जाते हैं। चुपके से माता-पिता के साथ सो जाते हैं। अनिद्रा या अतिनिद्रा के शिकार हैं। ऐसे में अभिभावकोंं की जिम्मेदारी है कि बच्चे से उसके पंसद की बातें करते हुए, अवसाद से बाहर निकालें।

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