जालंधर/हलचल न्यूज़
हिमाचल में राज्यसभा की एक सीट के लिए जबरदस्त उलटफेर देखने को मिला। राज्य चुनाव में बीजेपी के उम्मीदवार हर्ष महाजन ने जीत हासिल की। वहीं, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अभिषेक मनु सिंघवी को हार का सामना करना पड़ा। सुप्रीम कोर्ट में वकालत करने वाले अभिषेक मनु सिंघवी को भले ही जटिल से जटिल कानूनी मामले जीतने की आदत हो, लेकिन मंगलवार को, जिसे उन्होंने ‘जीत’ समझा था, वह जल्द ही हार में बदल गया। हिमाचल प्रदेश की एकमात्र सीट के लिए उम्मीदवार के रूप में, वह प्रतिद्वंद्वी के साथ अप्रत्याशित मुकाबले में फंस गए थे। कुछ कांग्रेस के विधायकों की तरफ से क्रॉस-वोटिंग के कारण यह मुकाबला बराबरी पर फंस गया था। दोनों उम्मीदवारों को 34-34 वोट मिले। इसके बाद परिणाम के लिए ड्रॉ की आवश्यकता पड़ी। अब इसे भाग्य कहें या दुर्भाग्य, सिंघवी ने ड्रा में जीत हासिल की, लेकिन इसे भाग्य का क्रूर खेल ही कहेंगे कि वह जीत कर भी हार गए। जानते हैं कि आखिर क्या है वह नियम जिसमें ड्रा में नाम आने के बाद अभिषेक मनु सिंघवी को हार का सामना करना पड़ा।
लॉटरी में नाम निकले पर क्यों मिलती है हार
चुनाव संचालन नियम, 1961 के नियम 75(4) के उम्मीदवारों को बराबर वोट मिलने की स्थिति में ड्रा का सहारा लिया जाता है। नियम के अनुसार, जहां एक अकेली राज्यसभा सीट के लिए दो या दो से अधिक उम्मीदवारों को समान मूल्य के वोट मिलते हैं, वहां सबसे कम मूल वोटों वाले उम्मीदवार को ड्रॉ द्वारा बाहर कर दिया जाता है। चुनाव आयोग के एक अधिकारी के अनुसार रिटर्निंग ऑफिसर उम्मीदवारों के नाम वाली पर्चियों को एक बॉक्स में रखता है। इस बॉक्स में पर्चियां निकालने से पहले उसे हिलाया जाता है। इसमें जिस उम्मीदवार की पर्ची निकाली जाती है, वह मुकाबला हार जाता है। ऐसे में जिसकी पर्ची बॉक्स में रह जाती है, उसे विजेता घोषित कर दिया जाता है।
क्या है प्रावधान
राज्यसभा और लोकसभा चुनाव में बराबरी की स्थिति में चुनाव संचालन नियम, 1961 के रूल 75 और 81 के तहत यह फैसला होता है।