जालंधर(विशाल कोहली)
नवरात्रि में कलश स्थापना करते ही खत्म हो जाती है नकारात्मक ऊर्जा अर्थात् कलश के मुख में विष्णुजी, कंठ में रुद्र, मूल में ब्रह्मा और मध्य में सभी मातृशक्तियां निवास करती हैं. कलश स्थापना का अर्थ है नवरात्रि के समय ब्रह्मांड में उपस्थित शक्तितत्त्व का घट अर्थात कलश में आवाहन कर उसे सक्रिय करना. शक्तितत्व के कारण वास्तु में उपस्थित कष्टदायक तरंगे नष्ट हो जाती हैं. प्रथम दिन पूजा की शुरुआत दुर्गा पूजा से निमित्त संकल्प लेकर ईशानकोण में कलश-स्थापना कर की जाती है.
घटस्थापना में सर्वप्रथम खेत की मिट्टी लाकर उसमें पांच प्रकार के धान बोएं जाते है. पांच प्रकार के धानों में गेहूं, जौ, चना, तिल, मूंग आदि होते हैं. जल, चंदन, पुष्प, दूर्वा, अक्षत, सुपारी तथा सिक्के मिट्टी अथवा तांबे के कलश में रखें जाते है. यदि घटस्थापना के मंत्र मालूम न हों, तो सभी वस्तुओं के नाम लेते हुए ‘समर्पयामि’ का उच्चारण करें. शास्त्रीय विधि से कलश में डाले जाने वाले सभी पदार्थ न मिलने पर चंदन, रोली, हल्दी की गांठ, सुपारी, एक रुपए का सिक्का, गंगाजल व दूर्वादल भी कलश में डाल सकते हैं.
जानते हैं नवरात्रि में कलश स्थापना कैसे करें…
कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त सुबह 6.16 से लेकर 7.40 मिनट तक है. इसके अलावा 11.48 से 12.35 तक भी कलश स्थापित किया जा सकता है. उत्तर पूर्व दिशा देवताओं की दिशा है. इसलिए, इस दिशा में माता की प्रतिमा और घट स्थापना करें. स्थापना और पूजा करने के बाद माता को फल व मिठाई का भोग लगाएं. पूजा के समय दुर्गा चालीसा या दुर्गा सप्तशती का पाठ करें और अखंड दीपक जलाएं जो 9 दिन तक जलता रहे.

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