जालंधर/हलचल न्यूज़
हाईकोर्ट ने कहा है कि राशन कार्ड विशेष रूप से जन वितरण प्रणाली (पीड़ीएस) के तहत आवश्यक सामग्री प्राप्त करने के लिए जारी किया जाता है। इसे पता या आवास का प्रमाण नहीं माना जा सकता है। न्यायमूर्ति चंद्रधारी सिंह ने पुनर्वास योजना के तहत आवास मांगने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए कहा कि योजना के तहत लाभ का दावा करने के लिए अनिवार्य दस्तावेज के रूप में राशन कार्ड़ की आवश्यकता मनमानी और अवैध है। न्यायमूर्ति ने यह बात क्षेत्र के पुनर्विकास के बाद पुनर्वास योजना के तहत वैकल्पिक आवास की मांग करने वाले कठपुतली कॉलोनी के पहले के निवासियों की याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए कही। उन्होंने कहा कि राशन कार्ड़ की परिभाषा के अनुसार इसे जारी करने का प्रयोजन यह है कि इसका लIय राशन दुकानों से आवश्यक खाद्य पदार्थ वितरित करना है। इसलिए यह किसी राशन कार्ड़ धारक के लिए आवास का पहचान पत्र नहीं हो सकता। राशन कार्ड़ जारी करने वाले प्राधिकार ने ऐसी कोई प्रणाली नहीं बनाई है जो सुनिश्चित करे कि राशन कार्ड़ धारक उस पर अंकित पते पर ही रहता है॥। कोर्ट ने झुग्गीवासियों को राहत देते हुए कहा कि डीडीए ने गलत तरीके से पते के प्रमाण के रूप में राशन कार्ड पर भरोसा किया है। उसने 2015 में केंद्रीय उपभोक्ता मामले‚ खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय के गजट अधिसूचना को ध्यान में नहीं रखा। इस दशा में इस अदालत का विचार है कि केवल राशन कार्ड जारी न करना याचिकाकर्ताओं को वैकल्पिक आवंटन से इनकार करने का आधार नहीं हो सकता है। अलग राशन कार्ड की अनिवार्यता मनमानी है क्योंकि इसे राजपत्र अधिसूचना के निर्देशानुसार पते के प्रमाण के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है॥। न्यायमूÌत सिंह ने कहा कि डीडीए दिल्ली स्लम और जेजे पुनर्वास और स्थानांतरण नीति‚ 2015 में सूचीबद्ध कट–आफ तिथि यानी 1 जनवरी 2015 से पहले जारी किए गए अन्य दस्तावेजों पर विचार करेगा‚ जिसमें पासपोर्ट‚ बिजली बिल‚ ड्राइविंग लाइसेंस‚ पहचान पत्र आदि हैं। उन्होंने यह कहते हुए डीडीए से झुग्गिवासियों को एक वैकल्पिक आवास इकाई आवंटित करने का निर्देश दिया। बशर्ते कि वे कट–ऑफ से पहले जारी किए गए प्रासंगिक दस्तावेज पेश करें और निर्धारित राशि जमा करे।