जालंधर से सीनियर रिपोर्टर अमित शर्मा की विशेष रिपोर्ट
सोशल मीडिया इन दिनों भ्रामक और अफवाह की खुराक बन चुका है। समर्थक अपने दलों को दलीलों से जीत दिला रहे हैं, गलत पोस्ट पर उनकी फजीहत भी हो रही है। ज्यादा किरकिरी के बाद पोस्ट डिलीट भी किए जा रहे हैं। समर्थक सोशल मीडिया पर अपने नेताओं का गुणगान करने में पीछे नहीं हैं। पार्टियों ने दर्जनों वाट्सएप ग्रुप बना रखे हैं। सभी के आइटी सेल की वजह से फेसबुक तो अब चुनावी अखाड़ा के रूप में तब्दील हो चुका है। इन सब के बीच ट्वीटर भी अपनी पैठ बनाने में जुटा हुआ है। गूगल पर जिसको देखो वहीं सर्च कर नेताओं से संबंधित जानकारियां एकत्र कर रहा है। कुल मिला कर सोशल मीडिया ने चुनावी जंग को दिलचस्प बनाने में किसी प्रकार की कोर कसर नहीं छोड़ रखी है। पंजाब में 19 मई को मतदान होना है, लेकिन अभी से फेसबुकिया शूरवीर रोजाना किसी न किसी राजनीतिक पार्टी के योद्धा को चुनाव जिताने व हराने का काम कर रहे हैं। लंबी बहस छिड़ रही है। प्रबुद्ध वर्ग फेसबुक पर पोस्ट राजनीतिक बयानों को लोकप्रियता का पैमाना मानकर समीकरण बनाने में जुटा हैं। उनका मानना है कि अगर किसी विशेष पार्टी को कम समय में अगर अधिक लाइक मिलती है तो समझो उसकी लोकप्रियता का ग्राफ ऊपर चढ़ रहा है। राजनीतिक पार्टियों के कार्यकर्ताओं ने गोपनीयता बरतने के लिए व्हाट्सऐप ग्रुप बना रखे हैं । पार्टी व प्रत्याशी के संबंध में सूचनाएं इसी से भेजी जा रही है। विरोधी खेमा इसमें सेंध लगाने में जुटा है।

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